मत्स्य विकास कार्यो को सुनियोजित रूप से सम्पादित किये जाने की दृष्टि से वर्ष 1947 में उ.प्र. मत्स्य विभाग की स्थापना पशुपालन विभाग के अन्तर्गत की गयी थी। वर्ष 1966 में मत्स्य विभाग पशुपालन विभाग से पृथक हुआ और स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगा। प्रथम पंचवर्षीय योजना अवधि में जमींदारी उन्मूलन के पश्चात् कुछ तालाब मत्स्य विभाग को हस्तान्तरित हुए, जिनमें विकास कार्य प्रारम्भ किया गया । मत्स्य विकास कार्यो को छठी पंचवर्षीय योजना में मत्स्य पालक विकास अभिकरणों की स्थापना के बाद विशेष गतिमयता प्राप्त हुयी। प्रदेश में मत्स्य बीज की बढ़ती माँग की पूर्ति के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश मत्स्य विकास निगम के द्वारा 09 बडे़ आकार की हैचरियों की स्थापना करायी गयी। 7वीं पंचवर्षीय योजना में प्रदेश के सभी जनपदों में मत्स्य पालक विकास अभिकरणों की स्थापना करायी गयी और अभिकरणों के माध्यम से मत्स्य पालकों को तालाबो के सुधार/नये तालाबो के निर्माण तथा प्रथम वर्ष के उत्पादन निवेशों हेतु बैंकों से ऋण व शासकीय अनुदान, अल्पकालीन प्रशिक्षण व निःशुल्क तकनीकी जानकारी की सुविधा उपलब्ध करायी जाती थी। वित्तीय वर्ष 2016-17 में माह-जून, 2016 तक यह योजना संचालित थी। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 में उपरोक्त समस्त केन्द्र पुरोनिधानित/केन्द्र पोषित योजनाओं को एक अम्बै्रला में लाते हुये नयी सेन्ट्रल सेक्टर स्कीम ‘‘ ब्लू रिवोल्यूशनः इन्टीग्रेटेड डेवलपमेन्ट एण्ड मैनेजमेन्ट आफ फिशरीज आरंभ की गयी, जिसके अन्तर्गत मत्स्य विकास के विभिन्न कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं
दृष्टि
ग्रामीण निर्धनता को मात्स्यिकी एवं जलीय जीवपालन से सम्पन्नता में परिवर्तन
मिशन
तकनीकी रूप से संचालित जलीय जीवपालन के माध्यम से अनेक गुना मत्स्य उत्पादन की वृद्धि एवं सामुदायिक भागीदारी से मात्स्यिकी का स्थायी विकास, निर्धनता कम करने, भोजन एवं पोषणीय सुरक्षा तथा सम्मिलित रूप से आर्थिक वृद्धि को गति देना
