नागरिक अधिकार पत्र

मछली एक शक्तिवर्द्धक तथा पौष्टिक खाद्य पदार्थ हैं। यह खाने में स्वादिष्ट और सुपाच्य होती है। मछली में आवश्यक एमीनोएसिड तथा प्रोटीन की अधिक मात्रा पायी जाती है। इसके अतिरिक्त चर्बी, कैल्शियम व खनिज भी पाये जाते हैं जिनके कारण संतुलित आहार में मछली की विशेष उपयोगिता है। ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध हैं जिनसे यह विदित होता है कि प्राचीन काल में भी मछली पालन होता था तथा मछली को आदिकाल से पौष्टिक आहार व मनोरंजन का उत्तम साधन माना गया है। मनुष्य के भोजन व देश की आर्थिकता में मछली की महत्वपूर्ण भूमिका को अनुभव करते हुए वर्ष 1926 "रायल कमीशन आन एग्रीकल्चर" ने मत्स्य की संसाधनों के विकास पर विशेष बल दिया तथा प्रदेशों में मत्स्य विभाग की स्थापना के लिए अपना मत रखा। उत्तर प्रदेश में स्वतंत्रा के पूर्व युद्धकाल की एक आवश्यकता के रूप में मत्स्य विकास कार्यक्रम वर्ष 1944 में प्रारम्भ किया गया था। "अधिक अन्न उपजाओ" कार्यक्रम के अन्तर्गत उस समय तालाबों से मछली निकालकर उसे सेना के जवानों को भेजे जाने का कार्य किया जाता था। मत्स्य पालन कार्यक्रम का शुभारम्भ वर्ष 1945 में पालन योग्य कार्प मत्स्य प्रजातियों की अंगुलिकाओं के संचय स्वरूप किया गया। उत्साहवर्द्धक परिणामों ने मत्स्य विकास कार्यक्रम के विस्तार व प्रसार का मार्ग प्रशस्त किया गया। प्रारम्भ में पशुपालन निदेशालय के अधीन मत्स्य विकास कार्य संचालित किये जाते थे। वर्ष 1948 में मत्स्य संसाधनों के उपयोग व उपलब्ध जल संपदा में मत्स्य संरक्षण की दृष्टि से "यू0पी0 फिशरीज एक्ट" बनाया गया। वर्ष 1950 में प्रदेश के 13 जनपदों में मत्स्य विकास कार्यों को काफी गतिमयता मिला। वर्ष 1966 में मत्स्य विकास को प्रदेश में काफी महत्ता दी गई तथा पृथक मत्स्य निदेशालय की स्थापना हुई। कालांतर में मछली पालन कार्यक्रमों को अभियान का स्वरूप देने के उद्देश्य से मत्स्य पालक विकास अभिकरण स्थापित किये गये जिनका मुख्य उद्देश्य तालाब सुधार व मत्स्य पालन निवेशों हेतु बैंक ऋण व शासकीय अनुदान सुलभ कराना है। मत्स्य पालक विकास अभिकरणों की स्थापना के पश्चात् प्रदेश में नील क्रांति को विशेष गतिमयता मिली है। वर्तामान में सभी जनपदों में मत्स्य पालक विकास अभिकरण कार्यरत हैं। मत्स्य बीज के उत्पादन हेतु मत्स्य विकास निगम की स्थापना वर्ष 1979 में की गयी। मछुआ समुदाय का सहकारिता के आधार पर उत्थान के मंतव्य से वर्ष 1983 में मत्स्य सहकारी समितियों के निबंधन का अधिकार निदेशक मत्स्य को मिला तथा वर्ष 1985 में मत्स्य जीवी सहकारी संघ स्थापित हुआ

वर्तमान में उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग, मत्स्य पालन के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान देने के लिए दृढ़संकल्प हैं तथा विशेषकर ग्रामीण अंचलों में सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों की प्रगति हेतु विभाग द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है

मत्स्य विभाग के प्रमुख उद्देश्य

  • उपलब्ध जल संसाधनों का मत्स्य विकास हेतु उपयोग
  • मत्स्य उत्पादन में वृद्धि
  • रोजगार सृजन
  • उत्तम प्रोटीनयुक्त पौष्टिक आहार की उपलब्धता
  • मछुआ कल्याणकारी कार्यक्रमों का संचालन

क्षैतिज विस्तार (हॉरिजान्टल एक्स्पेन्शन)

बंधे पानी के रूप‍ में उपलब्ध समस्त जलश्रोतों व निचली भूमि का मत्स्य पालन कार्यक्रम के अन्तर्गत आच्छादन

उर्ध्वाधर विस्तार (वर्टिकल एक्सपेन्शन)

  • सेमी इन्टेन्सिव व इटेन्सिव तकनीक जिसके अन्तर्गत तालाब की उचित प्रबन्ध व्यवस्था जैसे हाईडेंसिटी स्टाकिंग, एरेटर की स्थापना, उपयुक्त आहार की पूर्ति आदि से मत्स्य उत्पादकता स्तर में वृद्धि सुनिश्चित करना
  • समनिवत मत्स्य पालन (मत्स्य-सह-डेरी, मत्स्य-सह-बत्तख, मत्स्य-सह-मुर्गी व मत्स्य-सह-शूकर पालन) कार्यक्रम को बढ़ावा देकर मत्स्य पालकों के लाभ-लागत अनुपात में परिवर्तन अर्थात् मत्स्य पालन कार्यक्रम को अर्थिक रूप से लाभकारी बनाना

बहता हुआ पानी

नदियॉ / नहरें 28,500 कि0मी0

बंधा हुआ पानी

  • मानव निर्मित वृहद/मध्यमाकार/लघु जलाशय 1.29 लाख हेक्टेयर मत्स्य विभाग के अधीन जिसमें सिंचाई विभाग द्वारा नीलाम किये जाने वाले जलाशय सम्मिलित नही हैं
  • प्राकृतिक झीलें 1.33 लाख हेक्टेयर
  • ग्रामीण अंचलों में स्थित तालाब 1.61 लाख हेक्टेयर
  • कुल बंधा हुआ जलक्षेत्र 4.23 लाख हेक्टेयर

मत्स्य विभाग की लाभार्थी परक योजनाऐं।

1. नीली क्रांति योजना

सम्बंधित योजनओं का विवरण गाइड लाइन्स लिंक में देखा ज सकता हैं

2. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना

3. राष्ट्रीय मात्स्यकीय विकास बोर्ड द्वारा संचालित योजनायें

4. मत्स्य सहकारिता

मत्स्य जीवी सहकारी समितियों का गठन जिसमें न्यूनतम 33 सदस्य की अनिवार्यता

5. कल्याणकारी योजनायें

  • मछुआ आवास योजना जिसमें आवास निमार्ण के लिये रू0 1,20,000.00 दो किश्तोंमें देय है एवं 20 आवासो का  निर्माण एक गांव सभा में किया जायेगा
  • मछुआ दुर्धटना बीमा योजना नि:शुल्क जिसमें बीमित लाभार्थियों को दुर्धटना में मृत्यु होने पर रू0 2,00,000.00 व अपंग होने पर रू0 1,00,000.00 क्लेम का प्राविधान

6. जल प्लावित योजना

जल प्लावित भूमि में तालाब निमार्ण के लिये रू0 125000.00 प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान देय